यात्रा- वृतांत - अमरीका दिग्दर्शन
शिकागो संसार के प्रसिद्ध नगरों में से एक है जगद्विख्यात धनी जान-डी-राकफेलर स्थापित विश्वविद्यालय यहीं पर है। अमरीका के बड़े-बड़े कारख़ाने, पुतली घर यहीं पर हैं। इन कारख़ानों में हरएक क़ौम के लोग काम करते हैं। इतने बड़े प्रसिद्ध नगर के लोग अपने अवकाश का समय कैसे काटते हैं? वे अपना दिल कैसे बहलाते हैं? उस नगरी में देखने लायक क्या कुछ है? पाठकों के विनोदार्थ इन प्रश्नों का उत्तर हम इस लेख में देते हैं।
आइए आपको शिकागो की सैर कराएँ, इसके अजीब-अजीब दृश्य दिखावें, और आपको बतलावें कि इस प्रसिद्ध नगरी में कौन कौन स्थान दर्शनीय हैं। साथ ही हम इस नगर के निवासियों के रहन सहन का ब्योरा भी देते जाएँगे, जिसमें आपको अमरीका के इस प्रांत वालों की जीवनचर्या के विषय में भी कुछ ज्ञान हो जाए। इस काम के लिए हमने रविवार का दिन चुना है। उसी की महिमा हम इस लेख में वर्णन करेंगे। इससे हमारा अभीष्ट भी सिद्ध हो जाएगा और आपको यह भी मालूम हो जाएगा कि शिकागो के निवासी रविवार की छुट्टी किस तरह मनाते हैं।
रविवार छुट्टी का दिन है। भारतवर्ष में छोटे-छोटे बच्चे, जो स्कूलों में पढ़ते हैं, वे भी यह बात जानते हैं। एशिया और अफ़्रीका में जहाँ-जहाँ ईसाई लोगों का राज्य है सब कहीं स्कूलों और दफ़्तरों में रविवार को छुट्टी रहती है। परंतु रविवार की छुट्टी किस तरह माननी चाहिए, यह बात ईसाई धर्मावलंबियों के बीच रहे बिना अच्छी तरह नहीं अनुभव की जा सकती। रविवार की छुट्टी मनाने के लिए शिकागो में कैसे-कैसे स्थान बनाए गए हैं और किस प्रकार यहाँ वाले जीवन का आनंद लूटते हैं, इसका संक्षिप्त हाल सुनिए।
ईसाई-धर्म में रविवार को काम करना मना है। इस लिए सब दुकानें, पुस्तकालय, कारख़ाने आदि इस दिन बंद रहते हैं। क्या निर्धन क्या धनवान, क्या नौकर क्या स्वामी, क्या बालक क्या वृद्ध, क्या स्त्री क्या पुरुष सबके लिए आज छुट्टी है। 10:30 या 11 बजे, नियत समय पर, प्रातः काल, प्रायः सब लोग अपने अपने गिरजाघरों में जाते हुए दिखाई देते हैं। वहाँ ईश्वराधना के बाद घर लौटकर भोजन करते हैं; फिर कुछ देर आराम करके सैर को निकलते हैं।
शिकागो बहुत बड़ा शहर है। संसार के बड़े शहरों में इसका तीसरा नंबर है। यहाँ एक 'फील्ड म्यूज़ियम' अर्थात् अजायब घर है। यह मिशिगन झील के किनारे, शिकागो विश्वविद्यालय से थोड़ी ही दूर पर, है। रविवार को सवेरे नौ बजे से शाम के पाँच बजे तक, सबको यहाँ मुफ़्त सैर करने की आज्ञा है। इसलिए इस दिन यहाँ बड़ी भीड़ रहती है। आठ नौ बरस के आलक, बालिकाएँ ऐसे ही स्थानों से अपनी विद्या का प्रारंभ करते हैं। क्योंकि यहाँ पर संसार की उन सब अद्भुत वस्तुओं का संग्रह है, जो शिकागो के प्रसिद्ध सांसारिक मेले (World's Fair) में इकट्ठी की गई थी। यहाँ यह बात यथाक्रम दिखलाई गई है कि पृथ्वी के ऊपर प्राणियों का जीवन, प्राकृतिक नियमों के अनुसार, किस प्रकार वर्तमान अवस्था को पहुँचा है। भू-गर्भविद्या-संबंधी पदार्थों को भिन्न भिन्न कमरों में दरजे-ब-दरजे रखकर उनका क्रम-विकास अच्छी तरह बतलाया गया है। यहाँ यह स्पष्ट मालूम हो जाता है कि उत्तरी अमरीका के हिरन किस प्रकार भिन्न-भिन्न चारों ऋतुओं में अपना रंग बदलते हैं। किस प्रकार प्रकृति-माता बर्फ़ के दिनों में उनको भोजन देती हैं। उत्तरीय ध्रुव में रहने वाले रीछों के बर्फ़ के भीतर बने हुए घर क्या ही अच्छी तरह दिखाए गए हैं। यहाँ यह बात प्रत्यक्ष मालूम हो जाती है कि अमरीका के प्राचीन निवासी (Red Indians) किन देवी-देवताओं की पूजा करते थे, कैसे घरों में रहा करते थे, किस प्रकार किन चीज़ों की मदद से पहनने के वस्त्र बनाते थे। उनकी नौकाएँ, उनके खाने पीने का सामान, उनके देवालय, उनके युद्ध के शस्त्र—सब चीज़ बहुत ही अच्छी तरह दिखाई गई है सबसे अधिक सक्षम प्राणी ही संसार में बाक़ी रहते हैं, इस सिद्धांत की पुष्टि इन दृश्यों को देखते ही हो जाती है। जब हमने इन चीज़ों को देखा तब तत्काल हमें यह ख़याल हो आया कि क्या भारतवासियों का नाम, उनकी चीज़, उनका इतिहास आदि सब कुछ नष्ट होकर किसी दिन लंदन के अँग्रेज़ी अजायबघर (British Museum) में ही तो न रह जाएगा?
इस अजायबघर के मध्य में महात्मा कोलंबस की दीर्घ काय मूर्ति (Statue) विराजमान है। इस जिनोआ-निवासी को देखर दर्शक के मन में भाँति-भाँति के विचार उत्पन्न होने लगते हैं और एक अद्भुत दृश्य आँखों के सामने घूम जाता है। पुरानी अमरीका और आज की अमरीका में कितना अंतर है? वे यहाँ के प्राचीन-निवासी कहाँ गए? पिछली तीन शताब्दियों में यहाँ की भूमि का कैसा रूप बदला है। कहाँ योरप? कहाँ अमरीका? हज़ारों कोस का अंतर! भारतवर्ष की तलाश में एक पुरुष भूल से इधर आ निकलता है। उसका आना क्या है, यमराज के आने का संदेशा है! हज़ारों वर्षों से रहनेवाले, स्वतन्त्रता से विचरने वाले, क्या पशु, क्या पक्षी, क्या मनुष्य सभी तीन ही शताब्दियों के अंदर स्वाहा हो जाते हैं! करोड़ों भैंसे अमरीका के जंगलों में न जाने कब से, आनंद-पूर्वक विचरते थे पर आज उनका नामोनिशान तक नहीं मिलता। उन सब जीवों ने क्या अपराध किया था? क्यों एक दूर देश में बसने वाली जाति, जिसका कोई अधिकार इस देश पर नहीं था, आकर यहाँ के असली रहने वालों को नष्ट करने का कारण हुई? क्या यही ईश्वरीय न्याय है? नास्तिकता से भरे हुए ऐसे ही प्रश्न यहाँ दर्शक के मन में उठते हैं। तत्काल एक आवाज़ कान में आती है—प्रकृति की यह अटल सिद्धांत है कि सबसे अधिक सक्षम-सबसे अधिक योग्य ही को दुनियाँ में गुज़ारा है। यदि तुम अपना अस्तित्व चाहते हो तो अपने पास-पड़ोस वालों की बराबरी के बन जाओ। वही जाति अपना नाम संसार में स्थिर रख सकती है जो इस नियम के अनुकूल चलती है।
इस अजायबघर में वनस्पति-विद्या, रसायन-विद्या, जंतु-विद्या, नर-शरीर-विद्या आदि भिन्न 2 विद्याओं के संबंध की सामग्री भी विद्यमान है। “एक पंथ दो काज—छुट्टी का दिन है, सैर भी कीजिए और कुछ सीखिए भी। उन्नति के कैसे अच्छे मौक़े यहाँ के निवासियों को दिए जाते हैं। बालकपन से ही खेल के बहाने यहाँ वाले इतनी वाक़फ़ियत हासिल कर लेते हैं जो हमारे देश में दस बरस स्कूल में पढ़ने से भी नहीं होती।
अजायबघर से बाहर निकलकर देखिए, झील के किनारे किनारे, सड़क बनी है। बेंचे रखी हुई हैं। वहाँ स्त्री, पुरुष, बालक आनंद से बैठे हैं और हँस खेल रहे हैं। उनके चेहरों को देखिए—स्वतंत्रता उनके माथे पर जगमगा रही है। नवयुवक अपनी प्रियतमानों के साथ इधर से उधर, उधर से इधर, घूमते और वार्तालाप करते हुए क्या ही भले मालूम होते हैं। मिशिगन झील भी उनके इन प्रेम के भावों को देख कर प्रसन्न मालूम होती है। वह अपने स्वच्छ शीतल पवन के झोकों से उन्हें आशीर्वाद सा दे रही है। जल की तरंगे छोटे-छोटे बालकों को देखकर, उनसे मिलने के लिए बड़े आह्लाद से आगे बढ़ती हैं; परंतु तत्काल ही यह सोच कर कि शायद कुछ बेअदबी न हुई हो पीछे हट जाती है। इस समय भगवान् सूर्य अपने दिन के कार को पूर्ण कर पश्चिम की ओर गमन करते हैं।
इस अजायबघर के सिवा और भी बहुत से स्थान शिकागो निवासियों को रविवार मनाने के लिए है। कितने ही उद्यान ऐसे हैं जहाँ 'पियानो' बाजे तथा मन बहलाने के और अनेक सामान रखे रहते हैं। वहाँ आकर लोग बैठते हैं, संगीत सुनते हैं; और आनंद-मग्न होकर घर जाते हैं।
यहाँ एक उद्यान है जिसका नाम हम्बोल्ड पार्क है। इसमें नहर के ढंग के जल के बड़े-बड़े और कुंड हैं। उनमें जल भरा रहता है। छोटी-छोटी नावें पानी पर तैरा करती हैं। ये नावे खेल के लिए हैं। ग्रीष्म-काल में यहाँ नावों की दौड़ होती है। रविवार के दिन इन उद्यानों का दृश्य बहुत ही मनोहर हो जाता है। नवयुवक नौकाएँ खेते हुए हँसते-खेलते-गाते, जीवन का आनंद लेते हैं। एक-एक नौका पर प्राय: एक नवयुवक और एक युवती स्त्री होती है। वे सहाध्यायी मित्र, अथवा पति-पत्नी होते हैं। इस तरह की संगति इस देश में बुरी नहीं मानी जाती और न हम लोगों के देश की तरह ऐसे बुरे भाव ही इन लोगों में उत्पन्न होते हैं। स्त्रियों की बड़ी प्रतिष्ठा है। कोई बहुत ही पतित पुरुष होगा जो उनके साथ नीच व्यवहार करेगा। ऐसे पुरुष के लिए क़ानून में बड़े भारी दण्ड का विधान है। प्रायः सभी उद्यानों में ऐसे जल कुंड है। जो स्थान जिसके निकट हो वह वहीं जाकर रविवार को आनंद मनाता है।
कोई शायद पूछे कि क्या और रोज़ वहाँ जाना मना है? ऐसा नहीं है। परंतु कारण यह है कि अधिकांश लोगों को सिवा रविवार के और रोज़ छुट्टी ही नहीं मिलती; इसलिए रविवार को ही इन उद्यानों में लोग एकत्रित होते हैं। रोज़ सिर्फ़ कहाँ कहीं टेनिस खेलते हुए स्त्री पुरुष दिखाई देते हैं। यह बात ग्रीष्मऋतु की है। जाड़ों में जब इन कुंडों का पानी जम जाता है तब वहाँ पर लोग स्केटिंग करते हैं। स्केटिंग एक प्रकार का खेल है। हर साल दिसंबर में स्केटिंग का समय होता है। बेहद जाड़ा पड़ता है, पर बालक बालिकाए इन स्थानों में नाचती हुई दिखाई देती है।
लिंकन-उद्यान भी बहुत प्रसिद्ध है। इसमें अमरीका के विख्यात योद्धा वीर-वर ग्राण्ट की मूर्ति है। अश्वारूढ़ पाण्ड, इस देश के इतिहास के ज्ञाता को एक भयंकर युद्ध का स्मरण कराते हैं। यह युद्ध ग़ुलामों के व्यापार को बंद कराने के लिए आपस में हुआ था। अमरीका के उत्तर के लोग चाहते थे कि ग़ुलामों का व्यापार बंद हो जाए। उनका सिद्धांत था 'स्वतंत्रता की दूरी में सब आदमी बराबर है'—जीवन और स्वतंत्रता के स्वाभाविक नियमों में सबका हक़ एक-सा है। वे नहीं चाहते थे कि अमरीका जैले स्वतंत्र देश में मनुष्य भेड़-बकरियों की तरह बिके। इस सत्य सिद्धांत की रक्षा के लिए एक लोमहर्षक युद्ध उत्तर और दक्षिण निवासियों में हुआ, और परिणाम में सत्य की जय हुई। शुखबीर ग्राण्ट इस युद्ध में उत्तर वालों की ओर से सेनापति थे। वे काले हबशियों को वैसा ही चाहते थे जैसा कि गोरे चमड़े वाले अमेरिका के निवासियों को। इस महात्मा कास्मारक चिन्ह दर्शक को एक नया जीवन प्रदान करता है। वह उसे सूचना देता है कि किसी मनुष्य को दूसरे पर शासन करने का अधिकार नहीं है। सब मनुष्य इस विषय में बराबर हैं। समाज एक यंत्र की भाँति है। मनुष्य-समुदाय उसके पुरजे हैं। अपनी अपनी योग्यतानुसार सब समाज के सेवक हैं। किसी से घृणा मत करो, क्या काला, क्या गोरा, सब एक ही पिता के पुत्र हैं।
इस उद्यान के एक भाग में भिन्न-भिन्न प्रकार के पौधे रखे हुए हैं। जो वृत्त जिस तापमान में जी सकता है उसके अनुसार वहाँ उसे उष्णता पहुँचाई गई है और उसकी रक्षा की गई है। उष्ण देशों के अनेक वृक्ष यहाँ देखने में आते हैं। दर्शक को वनस्पति-विद्या-संबंधी बहुत सी बातें यहाँ मालूम हो जाती हैं।
उद्यानों के सिवा बहुत से और भी स्थान लोगों के बैठने-उठने, हँसने-खेलने के लिए हैं। शिकागो बहुत बड़ा नगर है। इससे नगर निवासियों के आराम और शुद्ध पान की प्राप्ति के लिए, बीच-बीच गलियों में, 'बुलावार्डज़' नामक विहार स्थल हैं। यहाँ की गलियाँ अपने देशों की जैसी नहीं हैं। गलियाँ क्या एक बाज़ार हैं। पत्थर के मकानों के आगे, दोनों किनारों पर पाँच फीट के क़रीब रास्ता सड़क से ऊँचा लोगों के चलने के लिए बना हुआ है। बीच की सड़क गाड़ी-घोड़े, मोटर आदि के लिए है। खुले मकानों और चौड़ी सड़कों के कोने पर भी, हवा साफ़ रखने और ग़रीब आदमियों के मनोरंजन तथा लाभ के लिए थोड़ी थोड़ी दूर पर विहार वाटिकाएँ हैं, जहाँ बैठने के लिए बेंचे रखी रहती हैं। काम से थके हुए स्त्री-पुरुष रोज़ सायंकाल में यहाँ दिखाई देते हैं। क्योंकि और स्थानों में गाने-बजाने और जल विहार आदि के लिए थोड़ा बहुत ख़र्च करना पड़ता है, जो थोड़ी आमदनी के लोग नहीं कर सकते। उनके लिए ऐसे स्थानों, उद्यानों और अजायबघरों में घूमने की स्वतंत्रता है। यत्न यह किया गया है कि सब को इस स्वतंत्र देश में आनंद प्राप्त करने का अवसर मिले। यहाँ जो धन व्यय किया जाता है वह, शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की उन्नति के लिए, किया जाता है।
यह तो हुई दिन की बात, अब रात की सुनिए। यहाँ बहुत से नाटक घर प्रदर्शनियाँ और समाज हैं, जहाँ अपनी-अपनी रुचि के अनुसार लोग रात को जाते हैं। शिकागो में लोग अक्सर रात को भी गिरजों में जाते हैं। रात को भी वहाँ उपदेश, गायन और हरिकीर्तन होता है। यहाँ एक जगह 'व्हाइट सिटी' है। बहुत से लोग वहाँ जाते हैं। इस जगह को 'स्वेत-नगर' इसलिए कहते हैं कि यहाँ बिजली की शुभ्र रोशनी होती है, जिससे रात को भी दिन ही सा रहता है। इसके विशाल द्वार पर बड़े मोटे-मोटे बिजली के प्रकाश के अक्षरों में 'दि व्हाइट सिटी' (The White City) लिखा हुआ है। बिजली की महिमा यहाँ ख़ूब ही देखने को मिलती है। स्थान-स्थान पर प्रकाश मय रंग-बिरंगे अक्षर-चित्र बने हुए हैं, जो मिनट-मिनट में रंग बदलते हैं। इस श्वेत-नगर के भीतर अनेक मनोरंजक स्थान हैं; कहीं पर गाना हो रहा है; कहीं बड़े-बड़े हालों में नाच हो रहा है; सरकस का तमाशा है। दुनिया भर के तमाशा करने वाले यहाँ लाए जाते हैं। गर्मी के दिनों में वे, तीन ही चार मास में, हज़ारों रुपए कमा लेते हैं। यह स्थान एक कंपनी का है। उसके नौकर सारी दुनिया में तमाशा करनेवालों को लाने के लिए घूमा करते हैं। भारतवर्ष के यदि दो तीन अच्छे अच्छे पहलवान, किसी देशी कंपनी के साथ, अमरीका में आवे तो हज़ारों रुपए कमाकर ले जाएँ। हमारे देश में अभी लोगों ने रुपया पैदा करने का ढंग नहीं सीखा। एक साधारण मनुष्य इंगलिस्तान से आकर हिंदुस्तान में विज्ञापनों द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त करके, लाखों बटोर कर ले जाता है, परंतु हमारे स्वदेशी कारीगर, पहलवान, बाज़ीगर आदि कभी इस ओर आने का साहस नहीं करते। अमरीका में कुश्ती का शौक़ बढ़ रहा है। यदि इस समय कोई पहलवान थोड़ा सा रुपया ख़र्च करके इधर आवे और किसी अच्छी कंपनी की मारफ़त कुश्ती हो, तो लाखो रुपए के वारे न्यारे हो जाएँ।
इस श्वेत-नगर में रविवार को बड़ा भारी मेला होता है। गाड़ियाँ स्त्री-पुरुषों से लदी हुई जाती हैं। हज़ारों दर्शक इकट्ठे होते हैं। रात के 8 बजे से 11 या 12 बजे तक मेला रहता है। यह स्थान केवल गर्मियों में खुलता है; क्योंकि जाड़ों में शीत के कारण यहाँ कोई नहीं आता। शीत ऋतु के लिए नगर के भीतर और अनेक स्थान हैं जहाँ और ही तरह के मनोरंजक मेल होते हैं।
रविवार का दिन इस नगरी में लोग इसी तरह व्यतीत करते हैं। अब यहाँ वालों की जीवन-चर्य्या का मिलान यदि हम भारतवर्ष से करते हैं तो कितना बड़ा अंतर पाते हैं। उन तमाशों या नाटकों की बात जाने दीजिए जिनको हमारे बहुत से पाठक शायद अच्छा न समझ, पर और ऐसे कितने मनोरंजक या शिक्षाप्रद खेल तमाशे हैं जिनका हमारे स्वदेशी भाइयों को शौक़ है? वे अपने अवकाश को, अपनी छुट्टियों को, किस तरह बिताते हैं? भांग पीकर, ताश खेलकर, पतंग उड़ाकर और व्यर्थ के बकबाद में लिप्त रह कर, वक़्त की वे क़ीमत ही नहीं जानते। यद्यपि कुछ पढ़े लिखे लोग ऐसे हैं जो इन बुराइयों से बचे हुए हैं, परंतु वे तीस करोड़ की जन-संख्या में दाल में नमक के बराबर भी नहीं। आधी संख्या हमारे देश में मुर्खा स्त्रियों की है जिनको बाहर निकलने की आज्ञा ही नहीं। जहाँ के निवासी सैंकड़े पीछे आठ से भी कम साक्षर हैं। उन्हें दुर्व्यसनों में डूबने से भगवान ही बचावे।
पाठक, यह शिकागो के एक दिन का दृश्य आपकी भेट किया गया। आशा है कि आप इससे लाभ उठाने का यज्ञ करेंगे। सोचिए तो सही, हमारे देश के करोड़ों निर्धन किस तरह जीवन जंजाल काट रहे हैं? जिन्हें हम नीच जाति के समझते हैं उन्हें किस घृणा की दृष्टि से हम देखते हैं? उनके सुख की हम कितनी परवा करते हैं? अपने घर, अपने नगर, अपनी दिन चर्य्या आदि का अन्य देशों से मुक़ाबिल कीजिए और देखिए कि इस समय हमारा कर्तव्य क्या है? वह रविवार का दृश्य आपको इसलिए नहीं दिखाया गया कि इसे देखकर आप भूल जाइए। नहीं; इससे आप कुछ सीखिए। यह दृश्य एक महान् उद्देश्य को सामने रख कर दिखाया गया है। कृपा करके, विचार तो कीजिए कि वह महान् उद्देश्य क्या है?
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