चौदह भुवन जो तर उपराहीं । ते सब मानुष के घट माहीं ॥
तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥
गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ?॥
नागमती यह दुनिया-धंधा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ॥
राघव दूत सोई सैतानू । माया अलाउदीं सुलतानू ॥
प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारहु । बूझि लेहु जौ बूझै पारहु ॥
तुरकी, अरबी, हिंदुई, भाषा जती आहिं ।
जेहि महँ मारग प्रेम कर सबै सराहैं ताहि ॥1॥
मुहमद कबि यह जोरि सुनावा । सुना सो पीर प्रेम कर पावा ॥
जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढि प्रीति नयनन्ह जल भेई ॥
औ मैं जानि गीत अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा ॥
कहाँ सो रतनसेन अब राजा ?। कहाँ सुआ अस बुधि उपराजा ?॥
कहाँ अलाउदीन सुलतानू ?। कहँ राघव जेइ कीन्ह बखानू ?॥
कहँ सुरूप पदमावति रानी?। कोइ न रहा, जग रही कहानी ॥
धनि सोई जस कीरति जासू । फूल मरै, पै मरै न बासू ॥
केइ न जगत बेंचा, कइ न लीन्ह जस मोल ?
जो यह पढै कहानी हम्ह सँवरै दुइ बोल ॥2॥
मुहमद बिरिध बैस जो भई । जोबन हुत, सो अवस्था गई ॥
बल जो गएउ कै खीन सरीरू । दीस्टि गई नैनहिं देइ नीरू ॥
दसन गए कै पचा कपोला । बैन गए अनरुच देइ बोला ॥
बुधि जो गई देई हिय बोराई । गरब गएउ तरहुँत सिर नाई ॥
सरवन गए ऊँच जो सुना । स्याही गई, सीस भा धुना ॥
भवँर गए केसहि देइ भूवा । जोबन गएउ जीति लेइ जूवा ॥
जौ लहि जीवन जोबन-साथा । पुनि सो मीचु पराए हाथा ॥
बिरिध जो सीस डोलावै, सीस धुनै तेहि रीस ।
बूढी आऊ होहु तुम्ह, केइ यह दीन्ह असीस ? ॥3॥
(1) एहि = इसका । पंडितन्ह = पंडितों से । कहा...सूझा =उन्होंने कहा, हमे तो सिवा इसके और कुछ नहीं सूझता है कि । ऊपराहीं = ऊपर । निरगुन = ब्रह्म, ईश्वर ।
(2) जोरी लाइ .....भेई = इस कविता को मैंने रक्त की लेई लगा कर जोडा है और गाढी प्रीति को आँसुओं से भिगो-भिगोकर गीला किया है । चीन्हा = चिह्न, निशान । उपराजा = उत्पन्न किया । अब बुधि उपराजा = जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुद्धि उत्पन्न की । केइ न जगत जस बेचा = किसने इस संसार में थोडे के लिये अपना यश नहीं खोया? अर्थात् ऐसे बहुत से लोग ऐसे हैं । हम्ह सँवरे = हमें याद करेगा । दुइ बोल = दो शब्दों में।
(3) पचा = पिचका हुआ । अनरुच = अरुचिकर । बोराई = बावलापन । तरहुँत = नीचे की ओर । धुना = धुनी रूई । भुवा = काँस के फूल । जौ लहि हाथा = कवि कहता है कि जबतक जिंदगी रहे जवानी के साथ रहे, फिर जब दूसरे का आश्रित होना पडे तब तो मरना ही अच्छा है । रीस = रिस या क्रोध से । केइ.....असीस किसने व्यर्थ ऐसा आशीर्वाद दिया ?
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