Sunday, July 24, 2022

कविता | मातृ-मन्दिर में | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Matra Mandir Mein | Subhadra Kumari Chauhan



 वीणा बज-सी उठी, खुल गए नेत्र

और कुछ आया ध्यान।

मुड़ने की थी देर, दिख पड़ा

उत्सव का प्यारा सामान ।।


जिनको तुतला-तुतला करके

शुरू किया था पहली बार।

जिस प्यारी भाषा में हमको

प्राप्त हुआ है माँ का प्यार ।।


उस हिन्दू जन की गरीबिनी

हिन्दी प्यारी हिन्दी का।

प्यारे भारतवर्ष -कृष्ण की

उस प्यारी कालिन्दी का ।।


है उसका ही समारोह यह

उसका ही उत्सव प्यारा।

मैं आश्चर्य-भरी आँखों से

देख रही हूँ यह सारा ।।


जिस प्रकार कंगाल-बालिका

अपनी माँ धनहीना को।

टुकड़ों की मोहताज़ आजतक

दुखिनी को उस दीना को ।।


सुन्दर वस्त्राभूषण-सज्जित,

देख चकित हो जाती है।

सच है या केवल सपना है,

कहती है, रुक जाती है ।।


पर सुन्दर लगती है, इच्छा

यह होती है कर ले प्यार ।

प्यारे चरणों पर बलि जाए

कर ले मन भर के मनुहार ।।


इच्छा प्रबल हुई, माता के

पास दौड़ कर जाती है ।

वस्त्रों को सँवारती उसको

आभूषण पहनाती है ।


उसी भाँति आश्चर्य मोदमय,

आज मुझे झिझकाता है ।

मन में उमड़ा हुआ भाव बस,

मुँह तक आ रुक जाता है ।।


प्रेमोन्मत्ता होकर तेरे पास

दौड़ आती हूँ मैं ।

तुझे सजाने या सँवारने

में ही सुख पाती हूँ मैं ।।


तेरी इस महानता में,

क्या होगा मूल्य सजाने का ?

तेरी भव्य मूर्ति को नकली

आभूषण पहनाने का ?


किन्तु हुआ क्या माता ! मैं भी

तो हूँ तेरी ही सन्तान ।

इसमें ही सन्तोष मुझे है

इसमें ही आनन्द महान ।।


मुझ-सी एक-एक की बन तू

तीस कोटि की आज हुई ।

हुई महान, सभी भाषाओं —

की तू ही सरताज हुई ।।


मेरे लिए बड़े गौरव की

और गर्व की है यह बात ।

तेरे ही द्वारा होवेगा,

भारत में स्वातन्त्रय-प्रभात ।।


असहयोग पर मर-मिट जाना

यह जीवन तेरा होगा ।

हम होंगे स्वाधीन, विश्व का

वैभव धन तेरा होगा ।।


जगती के वीरों-द्वारा

शुभ पदवन्दन तेरा होगा !

देवी के पुष्पों द्वारा

अब अभिनन्दन तेरा होगा ।।


तू होगी आधार, देश की

पार्लमेण्ट बन जाने में ।

तू होगी सुख-सार, देश के

उजड़े क्षेत्र बसाने में ।।


तू होगी व्यवहार, देश के

बिछड़े हृदय मिलाने में ।

तू होगी अधिकार, देशभर —

को स्वातन्त्रय दिलाने में ।।


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