Sunday, July 24, 2022

कविता | इसका रोना | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Iska Rona | Subhadra Kumari Chauhan


 
तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है |

मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है ||

सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे |

बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे || 1 ||


ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो |

यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो ||

कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है |

छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया है || 2 ||


हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है |

पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती है ||

जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है |

छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है || 3 ||


मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता है |

जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है ||

मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में |

जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में || 4 ||


मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता हूँ |

वह मेरी प्यारी बिटिया है मैं ही उसकी प्यारी माता हूँ ||

तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान |

जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 ||


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