Sunday, July 24, 2022

कविता | गिरफ़्तार होने वाले हैं | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Giraftar Hone Wale Hain | Subhadra Kumari Chauhan


 
‘‘गिरफ़्तार होने वाले हैं, आता है वारंट अभी॥’’

धक-सा हुआ हृदय, मैं सहमी, हुए विकल साशंक सभी॥

किन्तु सामने दीख पड़े मुस्कुरा रहे थे खड़े-खड़े।

रुके नहीं, आँखों से आँसू सहसा टपके बड़े-बड़े॥

‘‘पगली, यों ही दूर करेगी माता का यह रौरव कष्ट?’’

‘रुका वेग भावों का, दीखा अहा मुझे यह गौरव स्पष्ट॥

तिलक, लाजपत, श्री गांधीजी, गिरफ़्तारी बहुबार हुए।

जेल गये, जनता ने पूजा, संकट में अवतार हुए॥

जेल! हमारे मनमोहन के प्यारे पावन जन्म-स्थान।

तुझको सदा तीर्थ मानेगा कृष्ण-भक्त यह हिन्दुस्तान॥

मैं प्रफुल्ल हो उठी कि आहा! आज गिरफ़्तारी होगी।

फिर जी धड़का, क्या भैया की सचमुच तैयारी होगी!!

आँसू छलके, याद आगयी, राजपूत की वह बाला।

जिसने विदा किया भाई को देकर तिलक और भाला॥

सदियों सोयी हुई वीरता जागी, मैं भी वीर बनी।

जाओ भैया, विदा तुम्हें करती हूँ मैं गम्भीर बनी॥

याद भूल जाना मेरी उस आँसू वाली मुद्रा की।

कीजे यह स्वीकार बधाई छोटी बहिन ‘सुभद्रा’ की॥


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