Sunday, July 24, 2022

कविता | बालिका का परिचय | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Balika Ka Parichaye | Subhadra Kumari Chauhan



 यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली.

शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली .


दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली .

उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली .


सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की.

जीवित ज्योति नष्ट नयनों की, सच्ची लगन मनस्वी की.


बीते हुए बालपन की यह, क्रीड़ापूर्ण वाटिका है .

वही मचलना, वही किलकना,हँसती हुई नाटिका है .


मेरा मंदिर,मेरी मसजिद, काबा काशी यह मेरी .

पूजा पाठ,ध्यान,जप,तप,है घट-घट वासी यह मेरी.


कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं को अपने आंगन में देखो .

कौशल्या के मातृ-मोद को, अपने ही मन में देखो.


प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास.

जीव-दया जिनवर गौतम की,आओ देखो इसके पास .


परिचय पूछ रहे हो मुझसे, कैसे परिचय दूँ इसका .

वही जान सकता है इसको, माता का दिल है जिसका .


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