तू पाक परमानंदे।
पीर पैकबर पनहु तुम्हारी, मैं गरीब क्या गंदे॥टेक॥
तुम्ह दरिया सबही दिल भीतरि, परमानंद पियारे।
नैक नजरि हम ऊपरि नांहि, क्या कमिबखत हमारे॥
हिकमति करै हलाल बिचारै, आप कहांवै मोटे।
चाकरी चोर निवाले हाजिर, सांई सेती खोटे॥
दांइम दूवा करद बजावै, मैं क्या करूँ भिखारी।
कहै कबीर मैं बंदा तेरा, खालिक पनह तुम्हारी॥323॥
अब हम जगत गौंहन तैं भागे,
जग की देखि गति रांमहि ढूंरि लांगे॥टेक॥
अयांनपनै थैं बहु बौराने, समझि पर तब फिर पछिताने।
लोग कहौ जाकै जो मनि भावे, लहै भुवंगम कौन डसावै॥
कबीर बिचारि इहै डर डरिये, कहै का हो इहाँ रै मरिये॥324॥
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