ऐसै मन लाइ लै राम रसनाँ,
कपट भगति कीजै कौन गुणाँ॥टेक॥
ज्यूँ मृग नादैं बध्यौ जाइ, प्यंड परे बाकौ ध्याँन न जाइ।
ज्यूँ जल मीन तेत कर जांनि, प्रांन तजै बिसरै नहीं बानि॥
भ्रिगी कीट रहै ल्यौ लाइ, ह्नै लोलीन भिंरग ह्नै जाइ॥
राम नाम निज अमृत सार, सुमिरि सुमिरि जन उतरे पार॥
कहै कबीर दासनि को दास, अब नहीं छाड़ौ हरि के चरन निवास॥393॥
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