Monday, July 18, 2022

कबीर ग्रंथावली | हैरान कौ अंग (साखी) | कबीरदास | Kabir Granthavali | Hairan ko Ang / Sakhi | Kabirdas


 

पंडित सेती कहि रहे, कह्या न मानै कोइ।

ओ अगाध एका कहै, भारी अचिरज होइ॥1॥


बसे अपंडी पंड मैं, ता गति लषै न कोइ।

कहै कबीरा संत हौ, बड़ा अचम्भा मोहि॥2॥179॥


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