मन रे परस हरी के चरण। (टेक)
सुभग शीतल कमल कोमल, त्रिविध ज्वाला हरण।
जे चरण प्रह्लाद परसे, इंद्र पदवी धरण।।
जिन चरण ध्रुव अटल कीने, राखि अपनी शरण।
जिन चरण ब्रम्हांड भेट्यो, नख शिखौ श्री भरण।।
जिन चरण प्रभु पारसी लीने, तरी गौतम घरण।
जिन चरण कालिही नाथ्यो, गोप लीला करण।।
जिन चरण धारयो गोवर्धन, गरब मघवा हरण।
दासी मीरा लाल गिरीधर अगम तारण तरण।।1।।
पद संख्या – 02
बसो मोरे नैनन में नंदलाल। (टेक)
मोहनी मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल।
अधर सुधारस मुरली राजित, उर वैजन्ती माल।।
क्षुद्र घंटिका कटितट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वछल गोपाल।।2।।
पद संख्या – 03
हरि! मेरे जीवन प्राण-आधार। (टेक)
और आसिरो नाहिन तुम बिन, तिनु लोक मंझार।।
आप बिना मोहि कछु ना सुहावे, निरख्यौ सब संसार।।
मीरा कहै मैं दासी रावरी की दीज्यौ मति बिसार।।3।।
पद संख्या – 04
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।(टेक)
हम चितवत तुम चितवत नाहीं, दिल के बड़े कठोर।
म्हारी आसा चितवनि तुम्हरी, और न दूजी दोर।।
तुमसे हमकूँ तो तुम ही हो, हम-सी लाख करोर।
ऊभी ठाड़ी अरज करत हूँ, अरज करत भयो भोर।।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी, दूँगी प्राण अकोर।।4।।
पद संख्या – 05
हे री माँ! नंद को गुमानी म्हारे मनड़ बस्यो। (टेक)
गहे द्रुम-डार कदम की ठाड़ो, मृदु मुस्क्याय म्हारी ओर हँस्यो।।
पितांवर कटि काछनी काछे, रतन जटित सिर मुकुट कस्यो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, निरख बदन म्हारो मनड़ो फँस्यो।।5।।
पद संख्या – 06
निपट बंकट छवि नैना अटके। (टेक)
देखत रूप मदन मोहन को, पियत पियूष न मटके।
वारिज भवाँ अलक टेढ़ी मानो, अति सुगंध रस अटके।
टेढ़ी कटि टेढ़ी कर मुरली, टेढ़ी पाग लर लटके।
मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरधर नागर नटके।।6।।
पद संख्या – 07
जब तें मोहि नंदनंदन दृष्टि परयो माई।
तबतै परलोक लोक, कछु नाँ सुहाई।।(टेक)
मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहै।
केसर को तिलक भाल, तीन लोक मोहै।।
कुंडल की अलक झलक, कपोलन पर छाई।
मानो मीन सरवर तजि, मकर मिलन आई।।
भृकुटी कुटिल चपल नयन, चितवन से टोना।
खंजन अरु मधुप मीन, मोहै मृग-छौना।।
अधर बिम्ब अरुण नयन, मधुर मंद हाँसी।
दसन दमक दाड़िम द्युति, दमकै चपला-सी।।
कंबु कंठ भुज विसाल, ग्रीव तीन रेखा।
नटवर को भेष मानु, सकल गुण विसेखा।।
छुद्र घंट किंकिनी, अनूप धुन सुहाई।
गिरधर के अंग-अंग, मीरा बलि जाई।।7।।
पद संख्या – 08
नैना लोभी रे बहुरि सके नहिं आय। (टेक)
रोम-रोम नख-सिख सब निरखत, ललच रहे ललचाय।।
मैं ठाढ़ी गृह आपने रे, मोहन निकसे आय।
सारंग ओट तजे कुल अंकुस, बदन दिये मुस्काय।।
लोक कुंटबी बरज बरज ही, बतियाँ कहत बनाय।
चंचल चपल अटक नहिं मानत, पर हथ गये बिकाय।।
भली कहो कोई बुरी कहो मैं, सब लई सीस चढ़ाय।
मीरा कहे प्रभु गिरधर के बिन, पल भर रह्यो न जाय।।8।।
पद संख्या – 09
आली री मेरे नयनन बान पड़ी। (टेक)
चित्त चढ़ी मेरे माधुरी मूरत, उर बिच आन अड़ी।।
कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ, अपने भवन खड़ी।
कैसे प्राण पिया बिन राखूँ, जीवन मूल जड़ी।।
मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी।।9।।
पद संख्या – 10
मेरे तो गिरिधर गोपाल, दुसरौ न कोई। (टेक)
जाके सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई।।
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करि हैं कोई?
संतन ढिग बैठि-बैठी, लोकलाज खोई।।
अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेल बोई।
अब तो बेल फैलि गई, आणाद-फल होई।।
दूध की मथनियाँ, बड़े प्रेम से बिलोई।
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोई।।
भगत देखि राजी हुई, जगत देखि रोई।
दासि मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोही।।10।।
पद संख्या – 11
मैं सांवरे के रँग राची। (टेक)
साजि सिंगार, बाँधि पग घुँघरु, लोकलाज साजि नाची।।
गई कुमति, लई साध की संगत, भगत रूप भई साँची।
गाइ-गाइ हरि के गुण निसदिन, काल-व्याल सो बाँची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्री गिरधरन लाल सूँ, भगत रसीली जाँची।।11।।
पद संख्या – 12
मैं गिरधर के घर जाऊं।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ ॥
रैण पड़ै तबही उठि जाऊँ, भोर भये उठि आऊँ ।
रैण-दिनां वाके संग खेलूं, ज्यूँ-त्यूं ताहि रिझाऊं॥
जो पहिरावै सोई पहिरूं, जो देवै सोई खाऊँ ।
मेरी उण की प्रीति पुराणी, उण बिन पल न रहाऊँ।
जहाँ बैठावें तित ही बैठूँ, बेचै तो बिक जाऊँ ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊँ ॥12।।
पद संख्या – 13
माई री! मैं तो लियो गोबिन्दो मोल। (टेक)
कोई कहै छानै, कोई कहै चौड़े, लियो री बजंता ढोल ।
कोई कहै मुँहघो, कोई सुँहघो, लियो री तराजू तोल ।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल ।
याही कूँ सब लोग जाणत है, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूँ प्रभु दरसण दीज्यौ, पूरब जनम को कोल ।।13।।
पद संख्या – 14
मैं गिरधर रंग राती, सैयां मैं (टेक)
पचरंग चोला पहर सखी मैं, झिरमिट खेलन जाती।
ओह झिरमिट मां मिल्यो साँवरो, खोल मिली तन गाती।।
जिनका पिया परदेस बसत हैं, लिख लिख भेजें पाती।
मेरा पिया मेरे हीय बसत है, ना कहुं आती जाती।
चंदा जायगा, सूरज जायगा, जायगी धरण अकासी।
पवन-पाणी दोनूं ही जायेंगा, अटल रहै अविनासी।।
सुरत-निरत का दिवला संजोले, मनसा की करले बाती।
प्रेम-हटी का तेल मँगाले, जगे रह्य दिन-राती।
सतगुरु मिलिया, सांसा भाग्या, सैन बताई साँची।
ना घर तेरा ना घर मेरा, गावै मीरा दासी।।14।।
पद संख्या – 15
बड़े घर ताली लागी रे,
म्हारा मन री उणारथ भागी रे। (टेक)
छीलरियै म्हारो चित नहीं रे, डाबरिये कुण जाव?
गंगा जमनाँ सूँ काम नहीं रे, मैं तो जाई मिलूँ दरियाव।
हाल्याँ-मोल्याँ सूँ काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार।
कामदाराँ सूँ काम नहीं रे, मैं तो जाब करूँ दरबार।
काच-कथीर सूँ काम नहीं रे, लोहा चढ़े सिर भार।
सोना-रूपा सूँ काम नहीं रे, म्हारे हीराँ रो वौपार।
भाग हमारो जागियो रे, भयो समंद-सूँ सीर।
इमरत प्याला छाँड़ि कै, कुण पीवै कड़वो नीर।
पीपा कूँ प्रभु परचौ दीन्हौ, दिया रे खजीना भरपूर।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, धणी मिल्या छै हजूर।।15।।
पद संख्या – 16
मीरां लागो रंग हरी, औरन रंग सब अटक परी।। (टेक)
चूड़ो म्हारे तिलक अरू माला, सील-बरत सिणगारो।
और सिंगार म्हांरे दाय न आवै, यो गुर ग्यान हमारो।
कोई निन्दो, कोई बिन्दो, म्हें तो गुण गोविन्द का गास्याँ।
जिण मारग म्हारा साध पधारै, उण मारग म्हे जास्याँ।
चोरी न करस्याँ, जिव न सतास्याँ, कांई करसी म्हारो कोई।
गज से उतर के खर नहिं चढ़स्याँ, ये तो बात न होई।।16।।
पद संख्या – 17
आओ सहेल्याँ रली करां हे, पर घर गवण निवारि॥
झूठी माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
झूठा सब आभूषणा री, सांची पियाजी री प्रीति॥
झूठा पाट पटवरा रे, झूठा दिखणी चीर।
सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
छप्पन भोग बुहाइ दे हे, इन भोगनि में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है, अपणे पियाजी को साग॥
देखि बिराणे निवांण कूं हे, क्यूं उपजावै खीज।
कालर अपणो ही भलो हे, जामें निपजै चीज॥
छैल बिराणो लाख को हे, अपणे काज न होय।
ताके संग सीधारताँ हे, भला न कहसी कोय॥
वर हीणो अपणो भलो हे, कोढी कुष्टी होइ।
जाके संग सीधारताँ हे, भला कहै सब कोइ॥
अबिनासी सो बालमा हे, जिनसूं साँची प्रीत।
मीरा कूँ प्रभु जी मिल्या हे, ये ही भगति की रीत॥17।।
पद संख्या – 18
बरजी मैं काहू की नाहिं रहूँ। (टेक)
सुनो री सखी तुमसों या मान की, साँची बात कहूँ।
साधु संगति करि हरि सुख लेऊँ, जगतै हौं दूरि रहूँ।
तन धन मेरो सब ही जावो, भल मेरो सीस लहूँ।
मन मेरो लागो सुमिरन सेती, सबको मैं बोल सहूँ।
मीराँ कहे प्रभु गिरधर नागर, सतगुरु शरन गहूँ।।18।।
पद संख्या – 19
नहिं भावै थांरो देसड़लो रंग-रूड़ो॥
थांरा देसा में राणा! साध नहीं छै, लोग बसे सब कूड़ो।
गहणा-गांठा हम सब त्याग्या, तयाग्यो कर रो चूड़ो।
काजल-टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो बांधन जूड़ो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर वर पायो छै पुरो॥19।।
पद संख्या – 20
राणाजी! थे क्याँने राखो म्हाँसूँ बैर। (टेक)
थे तो राणाजी म्हाँने इसड़ा लागो, ज्यूँ बिरछन में कैर।
महल_अटारी हम सब त्याग्या, त्याग्यो थाँरो सहर।
काजलटीकी हम सब त्याग्या, भगवीं चादर पहर।
थारै रुस्याँ राणा! कुछ नहिं बिगडै, अब हरि कीन्ही महर।
मीराँके प्रभु गिरधर नागर, इमरत कर दियो जहर॥20।।
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