आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य को समाज का दर्पण कहा है।यानी समाज में जो घटनाएँ घटित होती हैं उनका प्रतिबिंब हमें साहित्य में देखने को मिलता है । द्विवेदी जी की इस परिभाषा से हम सिनेमा को भी परिभाषित कर सकते हैं । दोनों का कार्य लगभग एक ही है ,अन्तर है तो बस स्वरूप का । जहाँ साहित्य की पहुँच सिर्फ शिक्षित वर्ग तक ही सीमित है वहीं सिनेमा उन लोगों के लिए भी है ,जो लिखना और पढ़ना नहीं जानते । इससे एक बात तो स्पष्ट है कि सिनेमा का क्षेत्र साहित्य से अधिक विस्तृत है । परन्तु जब दोनों में गुणात्मक तुलना की जाती है ,तब साहित्य को ही श्रेष्ठ माना जाता है । सिनेमा को निम्न कोटि का समझा जाता है । यही कारण है कि अच्छे साहित्यकार इस ओर जाने में संकोच करते हैं । इसी के परिणाम स्वरूप साहित्यिक कृतियों पर बनने वाली फिल्मों की संख्या भी कम है, और जो हैं उनमें से अधिकतर जनता के द्वारा नकार दी गई हैं । हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकर मुंशी प्रेमचंद जिनकी कृतियों को लोगों ने इतना पसंद किया कि उन्हें हिन्दी साहित्य के सबसे सफल लेखक के रूप में जाना जाने लगा। लेकिन जब इन कृतियों को फिल्मांतरित किया गया । तब इसी पाठक वर्ग ने उन्हें देखना तक उचित न समझा । इनमें ‘नवजीवन’ ,‘सेवासदन’ ,‘त्रियाचरित्र’,‘स्वामी’ , ‘रंगभूमि’ आदि फिल्में शामिल हैं । सिर्फ प्रेमचंद ही नहीं कई और साहित्यकारों की कृतियों पर बनी फिल्मों के प्रति भी जनता का यही रूख देखने को मिला । इसके बाद फिल्मकारों का साहित्य से मोहभंग होना स्वाभाविक ही था । और फिर दो अलग-अलग धाराएँ ‘फिल्म लेखन’ और ‘साहित्य लेखन’ अपने-अपने रास्ते बहने लगीं । लेकिन साहित्य और सिनेमा के बीच जो खाई बनी उसकी उत्पति का कारण क्या था? आखिर ऐसी क्या वजह थी कि जिस रचना को जनता ने सिर आँखों पर बैठाया ,उसी के फिल्मांतरित स्वरूप को नकार दिया ? इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
अब प्रश्न उठता है कि साहित्य और सिनेमा में कमलेश्वर की क्या भूमिका है। जैसा कि मैंने पहले बताया है कि साहित्य और सिनेमा के बीच एक खाई बन चुकी थी। एक लंबे अन्तराल के बाद कमलेश्वर ही वह साहित्यकार थे । जिन्होंने इस खाई को पाटने का कार्य किया, और अपने इस प्रयास में काफी हद तक सफल भी हुए। अभी तक इनके पाँच उपन्यासों पर फिल्में बनाई जा चुकी है। ये उपन्यास, फिल्में और इनके निर्देशक हैं -
उपन्यास फिल्म निर्देशक
1- काली आँधी आँधी गुलज़ार
2- पति पत्नी और वह पति पत्नी और वो बी॰आर॰
चोपड़ा
3- आगामी अतीत मौसम गुलज़ार
4- डाक बंगला डाक बंगला गिरीष रंजन
5- एक सड़क सत्तावन बदनाम बस्ती प्रेम कपूर
गलियाँ
इन सभी फिल्मों को जनता ने तो पसंद किया ही, साथ ही ये साहित्यिक कसौटी पर भी सौ फीसदी खरी उतरीं। इससे एक फैली हुई भ्रांति कि ‘साहित्यिक कृतियों’ पर बनने वाली फिल्मों को जनता नकार देती है, दूर हो गई, और कमलेश्वर उन नये लेखकों के लिए मील का पत्थर साबित हुए, जो स्वयं को साहित्य और सिनेमा दोनों में स्थापित करना चाहते हैं। यह उपलब्धि सिर्फ कमलेश्वर की ही नहीं थी। इसे साहित्य और सिनेमा की दृष्टि से भी एक सकारात्मक पहल कहा जा सकता है।
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